🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
क्या लिखूं तुम्हारे बारे में
जब तुम खुद ही एक कविता हो?
।।
मुश्किल में पड़ जाती हूँ,
जब खोजती हूँ शब्दों को
पिरोने के लिए माला में।
न कलम साथ देती है,
न मौसम का मिजा़ज बनता है।
।।
पर मैं भी तो कम नहीं,
हार नहीं मानती।
ज़ोर देती हूँ कलम पर,
पन्नों से माँगती हूँ साथ;
चलो मेरी सोच की राह पर,
थोड़ा करके मुझ पर भी विश्वास।
।।
कलम, शब्द और पन्ने
सब कहते, न कर इतनी मेहनत;
क्यों लिखे कविता पर कविता,
जब कविता है खुद तेरे पास।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐