चलते-चलते (Hindi Poem)

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चलते-चलते मैं समंदर से मिली—

उसने मुझे इतना प्यार दिया

कि वो मेरी आंँखों में समा गया।

जब मैंने कहा… फिर मिलेंगे,

उसने इसे मेरा वादा समझा,

और आंँखों से ही बह गया।

फिर मैं पहाड़ से मिली—

पहाड़ ने मुझे गले लगाया,

पहाड़ ने मुझे अपनी तरह समझा।

जब मैंने कहा… फिर मिलेंगे,

उसने इसे मेरा वादा समझा,

और मुझे अपने दिल से रास्ता दिया।

मैं और ऊपर गयी और

तेज़ हवा से मिली।

तेज़ हवा ने मुझे सुकून दिया।

मैंने पूछा… क्या हम फिर मिलेंगे?

उसे मुझसे अलग होने में दुःख हुआ।

अब मैं वहाँ हूँ जहाँ और कोई ज़रूरत नहीं।

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Published by Sneha

Thinker, Poetess, Instructional Designer

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