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न लोग तेरे हैं, न नेता।
तू खाली हाथ आया था,
और खाली हाथ ही लौटेगा।
पर हैं जो तेरे यह दोनों हाथ,
बनाते हैं यही किसी नेता की किस्मत,
और इस देश की साख।
चल उठ खड़ा हो,
तू नहीं है मजबूर।
खुद को बना और देश को भी,
ऐ कर्मठ मजदूर।
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A poem salute to all the labourers who toil and build a nation.
So deep!!!👍
Thanks a lot. Glad you found the depth, dear deeply shreded! 😁