भोली भाली चीची आई,
डरते डरते मां को समाचार बताई—
“जिस पेड़ पर रहते हैं हम,
जिस पर खाते, खेला करते हरदम,
उस पेड़ को काटेगा कोई।”
कहते-कहते खूब वो रोई।
चीची की मांँ गई थोड़ी डर,
बोली, “परिवार है पेड़ पर निर्भर।”
“ना सिर्फ मेरा या पड़ोसी का,
जंंगल है तो जीवन है हर पशु-पक्षी का।”
चीची की मांँ ने बनाई योजना,
“जंंगल बचाने की सब में जगानी है प्रेरणा।”
“चलो सभी राजा जी के पास,
अब उनसे है आखिरी आस।”
शेर राजा ने कहा, “एक उपाय है सही”
“खून–खराबे से कुछ होगा ही नहीं।”
“सभी को भेजना होगा संदेश मनुष्यों के घर
कि उनका भी जीवन है जंगलों पर निर्भर।”
“पेड़ सारे तुम काट दोगे अगर
कहांँ से आएगा ऑक्सीजन धरती पर”
“न रहेंगे पशु, न मिलेगा दूध,
होगा जल संकट और पर्यावरण अशुद्ध।”
पशुओं ने भेजा मनुष्यों को संदेश—
“करें सभी जंगलों में निवेश।”
जंगल में निवेश – कविता
