जंगल में निवेश – कविता

भोली भाली चीची आई, डरते डरते मां को समाचार बताई— “जिस पेड़ पर रहते हैं हम, जिस पर खाते, खेला करते हरदम, उस पेड़ को काटेगा कोई।” कहते-कहते खूब वो रोई। चीची की मांँ गई थोड़ी डर, बोली, “परिवार है पेड़ पर निर्भर।” “ना सिर्फ मेरा या पड़ोसी का, जंंगल है तो जीवन है हरContinue reading “जंगल में निवेश – कविता”